हिंदू पंचांग के अनुसार, साल का पहला महीना चैत्र होता है, जिससे हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है. इन दिनों चैत्र का महीना चल रहा है और देश की राजनीति के लिहाज से यह महीना काफी अहम माना जा रहा है. सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष की पार्टियां इस महीने अपनी सियासी एजेंडे को धार देने की कोशिश में है. सीपीएम का महाअधिवेशन तमिलनाडु में चल रहा है तो कांग्रेस का अधिवेशन अगले सप्ताह गुजरात के अहमदाबाद में होने जा रहा है. वहीं, बीजेपी अप्रैल के तीसरे सप्ताह में कर्नाटक के बेंगलुरु में दो दिन की बैठक करने जा रही है.
सीपीएम अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है तो कांग्रेस 11 साल से सत्ता से बाहर है और एक के बाद एक राज्य उसकी सियासी पकड़ से बाहर निकलते जा रहे हैं. बीजेपी 11 साल से देश की सत्ता पर काबिज है और आधे से ज्यादा राज्यों में उसकी सरकार है. इस तरह से तीनों ही दलों के लिए अप्रैल का महीना काफी अहम है. सीपीएम दो अप्रैल से शुरू हुआ अधिवेशन, जिसे कांग्रेस कहा जाता है, ये छह अप्रैल तक चलेगी. ये सीताराम येचुरी नगर मदुरई तमिलनाडु में हो रहा है तो दूसरा कांग्रेस का प्लेनरी अधिवेशन 8 और 9 अप्रैल को गुजरात के अहमदाबाद में होगा.
सीपीएम क्या दे पाएगी नई दिशा
सीपीएम अपने इतिहास के सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है. केरल की सत्ता उसकी बची हुई है. सीताराम येचुरी के निधन के बाद अब सीपीएम को अपने अगले महासचिव की तलाश की प्रक्रिया पूरी करनी है. प्रकाश करात को सीपीएम का कार्यकारी महासचिव जरूर हैं, लेकिन स्थाई तौर पर सीपीएम की सेंट्रल कमेटी हो रही बैठक में फाइनल मुहर लगेगी. सीपीएम में महासचिव ही सर्वोच्च पद होता है और पोलित ब्यूरो के सदस्य सलाहकार के रूप में काम करते हैं. सीपीएम महसचिव का चुनाव सेंट्रल कमेटी की बैठक में पोलित ब्यूरो के सदस्यों के द्वारा किया जाता है.
केरल में साल 2021 में विधानसभा चुनाव है, देश में एकलौता राज्य है, जहां पर लेफ्ट का कब्जा है. ऐसे में सीपीएम को ऐसे महासचिव की तलाश है, जो पार्टी के बिखरते हुए सियासी जनाधार को वापस ला सके. इसके अलावा पार्टी के खोए हुए विश्वास को हासिल कर सके. वामपंथी दल पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों की सत्ता से बेदखल हो चुकी हैं और केरल की इकलौता राज्य बचा हुआ. केरल में भी कांग्रेस के अगुवाई वाले यूडीएफ से सीपीएम को कड़ी चुनौती मिल रही है. ऐसे में केरल में अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां पर लेफ्ट को कांग्रेस के अगुवाई वाले यूडीएफ से दो-दो हाथ करना है. ऐसे में देखना है कि सीपीएम क्या अपनी राजनीति को नई दिशा देने में सफल हो पाएगा.
कांग्रेस तलाशेगी जीत का मंत्र
लोकसभा चुनाव के बाद जरूर कांग्रेस को एक नई जान मिली है, लेकिन 2024 में बने माहौल को हरियाणा और महाराष्ट्र की हार ने फीका कर दिया है. बिहार में कांग्रेस ने एक नई शुरुआत कर दी है और अपना संगठन जमीन से मजबूत करने की कवायद में है. इतना ही नहीं कांग्रेस ने अपने सभी जिला अध्यक्ष के साथ बैठक कर उनके मन की बात को जानना चाहा है. कांग्रेस ने जिस तरह से बिहार में कुछ ही महीनों में अपना संगठन चुस्त दुरुस्त कर दिया है वैसा ही संकल्प उसने देश भर में अपने संगठन के लिए लिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि 8 और 9 अप्रैल को गुजरात के अहमदाबाद में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन में कई अहम प्रस्ताव पास किए जाएंगे और साथ ही बीजेपी को मात देने का मंत्र भी तलाशेगी.
अहमदाबाद पूर्ण अधिवेशन से पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी दोनों पार्टी की कमियों पर बहुत साफगोई से बात कर चुके हैं. कह चुके हैं कि यह साल 2025 संगठन का साल होगा. कांग्रेस के इस पूर्ण अधिवेशन से पार्टी को संदेश देने में आसानी होगी. अहमदाबाद अधिवेशन कांग्रेस 86वां पूर्णअधिवेशन है पार्टी के लिए नया रास्ता खोलने वाला हो सकता है. कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती जहां देश के मुद्दों को लेकर जमीन पर संघर्ष की भी रहेगी तो वहीं दूसरी ओर तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अपने सरकार को बचाए रखने की होगी.
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बने हुए दो साल हो रहे हैं, लेकिन अभी तक अपनी टीम नहीं बना सके. ऐसे में अगर संगठन को नए सिरे से मजबूत करना है तो कांग्रेस को इसके लिए सख्त फैसले लेने होंगे. पार्टी नेतृत्व ने अधिवेशन में आए कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि संगठन में बड़े बदलाव का वह इस बार सिर्फ वादा नहीं कर रहा है बल्कि इस पर अमल किया जाना है.
ऐसे में सभी की निगाहें कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन पर टिकी हुई हैं, जहां से उसके लिए एक नई उम्मीद की किरण जाग सकती है. साल 2025 के आखिर में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2026 में पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस लिहाज से भी कांग्रेस की यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है.
बीजेपी का कर्नाटक में अधिवेशन
मिशन साउथ में कमल खिलाने के लिए बीजेपी ही नहीं आरएसएस ने भी अपनी एक्सरसाइज शुरू कर दी है. आरएसएस ने तीन दिनों तक बेंगलुरु में मंथन करने के बाद अब बीजेपी अपने राष्ट्रीय परिषद की बैठक बेंगलुरु में करने जा रही है. बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक 18 से 20 अप्रैल तक होगी. बेंगलुरु में बैठक का संकेत साफ है कि बीजेपी का फोकस साउथ में विस्तार करने पर है. केरल, तमिलनाडु और पुंडुचेरी वो राज्य या केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
दक्षिण का सबसे बड़ा राज्य तमिलनाडु है. इसके बाद दूसरा बड़ा राज्य कर्नाटक है और फिर केरल का नंबर आता है. कर्नाटक में बीजेपी कई बार सत्ता में रह चुकी है, लेकिन बाकी जगह अभी तक कमल नहीं खिल सका है. यही वजह है कि बीजेपी तमिलनाडु और केरल दोनों ही राज्यों के लिए खास प्लान बना रही है. इसके अलावा बिहार में छह महीने के बाद चुनाव है जबकि असम और पश्चिम बंगाल में 2026 में चुनाव होने हैं.
बेंगलुरु की बैठक में बीजेपी के नए अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगनी है और साथ ही 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव की रूपरेखना और एजेंडा भी तय किया जाना है. इस बैठक में देश के ज्वलंत मुद्दों के साथ बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के जीत की रणनीति बनाई जाएगी. पश्चिम बंगाल और केरल की सियासी जमीन बीजेपी के लिए अभी भी पथरीली बनी हुई है तो बिहार में जेडीयू के सहारे की सत्ता का स्वाद चखती रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी जहां पर कभी भी सत्ता में नहीं आ सकी है, उन राज्यों में पार्टी के जीत के लिए इबारत बेंगलुरु में लिखी जाएगी.
बीजेपी असम छोड़कर किसी भी राज्य में अभी तक अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकी है. बंगाल, केरल और तमिलनाडु की सियासी जमीन बीजेपी के लिए बंजर ही रही है, लेकिन संघ उसे उपजाऊ बनाने के लिए लगातार मेहनत कर रहा है. RSS की प्रतिनिधि सभा की बैठक बेंगलुरु में हुई और अब बीजेपी के राष्ट्रीय परिषद की बैठक भी बेंगलुरु में होने जा रही है. ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए किस तरह की रणनीति और एजेंडे के साथ आगे बढ़ेगी.